बड़ी खबर(उत्तराखंड) इसलिए लिखा राज्य आंदोलनकारी ने खून से पत्र. भेजा राष्ट्रपति को ।


गैरसैंण में आंदोलन: भूख हड़ताल में खून से लिखा राष्ट्रपति को पत्र
गैरसैंण।


गैरसैंण के रामलीला मैदान में आज राजनीतिक माहौल गर्म है। पूर्व सैनिक भुवन सिंह कठायत के नेतृत्व में भूख हड़ताल का पांचवां दिन मनाते हुए, किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय और सैनिक पुत्री कुसुम लता बौड़ाई ने भी अपने-अपने हिस्से की भूख हड़ताल तथा मौन धारण जारी रखे हैं। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड सरकार से तत्काल कदम उठाकर कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल की बर्खास्तगी सुनिश्चित करना है।
आंदोलनकारियों ने एक विशेष और प्रतीकात्मक कार्रवाई की। रामलीला मैदान से निकलकर तसीलदार गैरसैंण के माध्यम से, खून से लिखा हुआ एक पत्र भारत के राष्ट्रपति को सौंपा गया। पत्र में स्पष्ट रूप से मांग की गई है कि मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल को तुरंत पद से हटाया जाए। आंदोलनकारियों का मानना है कि सरकार ने पर्वतीय समाज की समस्याओं, स्वाभिमान और अधिकारों को अनदेखा करते हुए ऐसे निर्णय लिए हैं, जिससे आम जनता के विश्वास में दरार आ गई है।
पूर्व सैनिक भुवन सिंह कठायत ने अपने बयान में कहा,
“हमारी आवाज अब तक सरकार तक नहीं पहुंची है। यदि आज शाम 5 बजे के पश्चात हमारी मांगों पर गौर नहीं किया गया, तो हम मौन धारण कर लेंगे और यदि आवश्यकता पड़ी तो प्राण त्याग भी कर देंगे।”
उनके इस कड़े बयान ने आंदोलन में एक नया मोड़ ला दिया है, जिससे सरकार पर और दबाव बढ़ गया है।
युवा किसान पुत्र कार्तिक उपाध्याय ने अपने विचार प्रकट करते हुए आरोप लगाया,
“उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने पूरे पर्वतीय समाज की उपेक्षा कर दी है। या तो प्राणों का त्याग होगा या प्रेमचंद अग्रवाल की कुर्सी खाली हो जाएगी।”
सैनिक पुत्री कुसुम लता बौड़ाई ने भावुक स्वर में कहा,
“हमारे पहाड़ हमारे स्वाभिमान हैं। ऐसे मंत्री को हम अपनी नजरों में स्थान नहीं दे सकते।” यह घटना न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन चुकी है। आंदोलनकारियों के अनुसार, यह कदम सरकार के उन फैसलों के खिलाफ एक चेतावनी है, जिनसे पर्वतीय समाज का अधिकार, प्रतिष्ठा और स्वाभिमान ठेस पहुंचा है। यदि सरकार ने तत्काल कार्रवाई नहीं की, तो आज शाम के बाद मौन धारण के साथ आंदोलन को चरम सीमा तक ले जाने की धमकी भी दी जा रही है।

यह पूरी घटना एक गहन सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष का प्रतीक बन चुकी है, जिसमें आंदोलनकारियों की मांग है कि सरकार तत्काल कदम उठाकर उन निर्णयों का पुनर्मूल्यांकन करे, जिनसे आम जनता की भावनाओं को ठेस पहुंची है। राजनीतिक परिदृश्य में इस घटना का असर आने वाले दिनों में स्पष्ट रूप से दिखने की संभावना है, जिससे राज्य के भविष्य के प्रशासनिक और नीतिगत फैसलों पर भी प्रश्नचिह्न लग सकता है।

Ad

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *