नैनीताल । फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्रों के आधार पर राजकीय प्राथमिक विद्यालयों से सहायक अध्यापक पद से बर्खास्त शिक्षकों को हाईकोर्ट ने कोई राहत नहीं दी है । हाईकोर्ट ने विभिन्न जिलों के जिला शिक्षा आधिकारियों द्वारा जारी बर्खास्तगी आदेश पर हस्तक्षेप न करते हुए इन बर्खास्तगी आदेशों को चुनौती देती याचिकाएं खारिज कर दी हैं । हाईकोर्ट के वरिष्ठ न्यायधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी ने इन याचिकाओं की सुनवाई 20 सितम्बर को पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था और 3 अक्टूबर को फैसला दिया गया ।
याचिकाकर्ता विक्रम नेगी रुद्रप्रयाग जिले में 2005 में सहायक अध्यापक प्राथमिक के पद पर नियुक्त हुआ था । जिसके प्रमाण पत्रों की जांच में डिग्रियां फर्जी पाई गई थी और उसे जून 2022 में बर्खास्त कर दिया था । इसी तरह कई अन्य सहायक अध्यापक भी बर्खास्त हुए थे । जिन्होंने इस बर्खास्तगी आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी । जिनकी एकलपीठ ने एक साथ सुनवाई की ।
इन याचिकाओं की सुनवाई के बाद कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति अधिकारियों की ओर से किसी गलती के कारण नहीं, बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्रों के आधार पर हुई थी। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद अधिनियम, 1993 के प्रावधान के अनुसार, जिसके पास एनसीटीई द्वारा निर्धारित योग्यता नहीं है, उसे शिक्षक के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता है, और यदि नियुक्त किया जाता है, तो उसकी नियुक्ति अवैध होगी। इसके अलावा शिक्षक प्रशिक्षण योग्यता बी.एड., डी.एल.एड. आदि एनसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/संस्थान से प्राप्त किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता, जिसके पास वैध बी.एड. नहीं है। डिग्री, शिक्षक के रूप में नियुक्ति के लिए अयोग्य हैं और इसलिए उसकी सेवाओं को समाप्त करने के आदेश को दी गई चुनौती कानून सम्मत नहीं है।
इस आधार पर कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की सेवा समाप्ति के आदेश पर कोई हस्तक्षेप नहीं किया और याचिकाएं खारिज कर दी ।